श्रीकांत जी की एक कविता
द न्यूज़ यूनिवर्स श्रीकांत जी की अंतर्मन को छू लेने वाली कविता मेरे दुःख हाँ मेरे दुख मेरे अपने हैं कौन बांट लेगा इन्हें औऱ क्यों बांटू मैं अपने निजत्व को यदि मैं बांटू भी तो क्या संवेदनाओं के खाद, पानी से और नहीं बढ़ जाएंगे और नहीं सतायेंगे मेरे